सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, हिंदी साहित्य के महान कवि और लेखकने अपनी कृति ‘महाराणा प्रताप’ में भारत के महान योद्धा महाराणा प्रताप सिंह के गुणगान को व्यक्त किया है|
यह पुस्तक उस युग की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जब मुगल सम्राट अकबर ने भारत के विभिन्न राज्यों को अपने अधीन करने का प्रयास किया| महाराणा प्रताप, जो मेवाड़ के राजा थे, उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार करने के बजाय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने का साहस दिखाया| वह भारत के स्वतंत्रता प्रेमी नायकों में अद्वितीय स्थान रखते हैं| पुस्तक के केंद्रबिंदु में १५७६ में लड़ा गया प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध है| इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपनी सेना के साथ अकबर की विशाल मुगल सेना का डटकर सामना किया| यद्यपि यह युद्ध निर्णायक नहीं था, लेकिन इसमें प्रताप की बहादुरी और उनके घोड़े चेतक का बलिदान इतिहास में अमर हो गया| हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने जंगलों में निर्वासन का जीवन बिताया| उन्होंने आर्थिक कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन मुगलों की अधीनता स्वीकार करने के बजाय उन्होंने छापामार युद्ध जारी रखा| उनकी संघर्षशीलता और स्वाभिमान की भावना का अद्भुत वर्णन इस पुस्तक में मिलता है|
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की लेखनी का काव्यात्मक और भावनात्मक स्वर इस पुस्तक को विशिष्ट बनाता है| उनके शब्दों में ऐसी शक्ति है, जो पाठकों के मन में राष्ट्रप्रेम और गर्व की भावना जगा देती है| ‘महाराणा प्रताप’ स्वाभिमान, स्वतंत्रता, और अपराजेय साहस का प्रतीक हैं| यह पुस्तक पाठकों को महाराणा प्रताप के जीवन से प्रेरणा लेने और अपने मूल्यों के प्रति अडिग रहने का संदेश देती है| यह कृति न केवल एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, बल्कि एक साहित्यिक महाकाव्य भी है, जो महाराणा प्रताप को एक अमर नायक के रूप में प्रस्तुत करती है|
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