Dimagi Gulami | Meri Aatmakatha

268

324 Pages
AUTHOR :- Rahul Sankrityayan ,Dr. Babasaheb Ambedkar
ISBN :-‎ 9352208803

‘दिमागी गुलामी’ यह एक प्रभावशाली पुस्तक है| प्रसिद्ध भारतीय लेखक और विचारक राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखी हुई यह पुस्तक सामाजिक चेतना बढ़ाने हेतु महत्त्वपूर्ण समझी जाती है| यह पुस्तक भारत के सामाजिक और मानसिक दासता के विभिन्न पहलुओं और इसके भारतीय समाज प्रभावों का वर्णन करती है| राहुल सांकृत्यायन ने इस पुस्तक में दिमागी दासता के जटिल विषयों को सरल तरीके से प्रस्तुत किया है| इसमें लेखक की गहरी चिंतनशीलता और समाज की सच्चाई का एक प्रखर विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठकों को उस समय के भारतीय समाज की मिलती है|
राहुल सांकृत्यायन ने आत्मचिंतन और जागरूकता को मानसिक दासता से मुक्ति के साधन के रूप में प्रस्तुत किया है| उन्होंने तर्क, ज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाने की सलाह दी है| राहुल सांकृत्यायन की लेखन शैली प्रखर और स्पष्ट है| उनके विचार विद्वत्तापूर्ण होते हुए भी सरल में प्रस्तुत किए गए हैं, जिससे पाठक आसानी से पुस्तक के मर्म को समझ सकते हैं| उन्होने अपनी लेखनी के माध्यम से यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि मानसिक गुलामी का सबसे बड़ा कारण ज्ञान और तर्क की कमी है|
‘दिमागी गुलामी’ एक प्रेरणादायक, ज्ञानवर्धक और विचारोत्तेजक है जिससे पाठकों को एक व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त होता है| यह पुस्तक पाठकों को आत्मनिरीक्षण करने और मानसिक स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है| ‘दिमागी गुलामी’ न केवल भारतीय समाज के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रासंगिक है|

““मैं हाशिए के समाज में पैदा हुआ हूँ। मुझे इन समुदायों के लोगों की तरक्की के लिए अपना जीवन समर्पित करना है। इसे लेकर मैंने बचपन में ही कसम खायी है। मेरी इस कसम से मुझे दूर कर देनेवाले कई तरह के लालच मेरे जीवन में आए और गए। यदि मैं केवल निजी स्वार्थ पूर्ति का मकसद बचपन में ही तय कर लेता तो मेरे लिए किसी भी प्रतिष्ठित पद पर विराजमान होना आसान था। परंतु मैंने हाशिए के लोगों की तरक्की के मकसद से तमाम जीवन बीताने का संकल्प किया है। यह मकसद सामने रखकर मैं एक सिद्धांत का अवलंब करता आया हूँ, वह सिद्धांत यह कि किसी कार्य को अपने अंजाम तक पहुँचाने को लेकर किसी में भरपूर उत्साह मौजूद है और उस कार्य को अंजाम तक ले जाए बिना उसे चैन नहीं मिलता, ऐसे व्यक्ति द्वारा संकुचित सोच और कृति को अपनाया जाए तो वह ठीक नहीं होगा। हाशिए के लोगों के हित-अहित के मुद्दे को मौजूदा सरकार द्वारा कई दिनों से अनिर्णित रखा गया है। इसे देख मेरे दिल में कितनी पीड़ा हो रही है इसका (उपरोक्त हकीकत से) आपको अनुमान हो जाएगा।””
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर
डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर (14) अप्रैल, 1891 6 दिसंबर 1956) कानूनविद, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक और समाजसुधारक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने समता के आंदोलन को प्रेरणा दी थी। उन्होंने महिला और श्रमिकों के अधिकारों की पैरवी की थी। वे ब्रिटिश भारत में श्रममंत्री, स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री, भारतीय संविधान के निर्माता और भारत में बौद्ध धर्म के पुनरुज्जीवक थे। डॉ. आंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स जैसी विश्वविख्यात शिक्षण संस्थाओं से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त की थीं। उन्होंने समाज प्रबोधन के लिए अखबार चलाए। उन्होंने दलितों के राजनीतिक अधिकार और आजादी की पैरवी की। आधुनिक भारत के निर्माण में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। सन 2012 में ‘आउट लूक’ पत्रिका द्वारा कराए गए ‘द ग्रेटेस्ट इंडियन’ सर्वे में डॉ. आंबेडकर को महानतम भारतीय के रूप में चुना गया था। प्रस्तुत पुस्तक छात्र, शोधार्थी, ज्ञानसाधक एवं अध्येताओं के लिए प्रेरक साबित होगी, ऐसा विश्वास है।”

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